लघुकथा- मुस्कान / बुलाकी शर्मा
मुस्कान
बुलाकी शर्मा
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आवाज सुनकर मकान मालकिन आई और हाथ में ली हुई रोटी उसके सामने करती हुई बोली- "छबड़ी ऊंची कर...।"
रोटी देखकर वह लड़की अनमनी हो गई- "यह तो बासी रोटी है अंटीजी, मुझे ताजी रोटी दीजिए !"
उसकी बात सुनकर मकान मालकिन नाराज हुई- "ज्यादा नखरे ना कर ए छोरी, तेरी मां बेचारी तो मैं देती हूं वही ले लेती है ! तुझे तीन-पांच ज्यादा आता है !"
- "मां ले लेती होगी, पर मैं तो ताजा रोटी ही लूंगी अंटीजी।"
पास खड़ी मेहतरानी की लड़की की हम-उम्र मकान मालकिन की लड़की भी बातें सुन रही थी। उसने बीच में ही कहा- "यह ठीक ही तो कह रही है मम्मी... इसे ताजा रोटी दे दीजिए ना, ठंडी क्यों दे रही हैं।"
- "देखती हूं तुम्हारी भी जबान अधिक लम्बी हो गई है।" गुस्से से भरी मकान मालकिन ताजा रोटी लेने के लिए भीतर गई ।
दोनों लड़कियां एक-दूजे को देख मुस्करा रही थीं।
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