Saturday, January 24, 2015

मित्र अनिरुद्ध उमट के आवास पर

कल दोपहर अनुजवत नीरज दईय़ा का मिलने आना हुआ। नीरज राजस्थानी हिंदी में लिखते है और अपने स्वर्गीय पिता सांवर जी की ही तरह खरी खरी लिखते कहते है। इन दिनों राजस्थानी में वे सबसे महत्वपूर्ण काम आलोचना लिख कर रहे हैं। आंख की किरकिरी बनने के ख़तरे के बाद भी वे शायद अपनी रचना में बेहद सच्चे और निर्मम हैं। स्तुति गान की मानसिकता से परे वे बिना हासिल पाई और अंगुली सीध बात कर अपनी भाषा का मान बढ़ाते है और नकाब उतारने में लिहाज नही करते। नीरज के पिताजी का सान्निध्य मुझे मिला है। मैं देखता हूँ उनकी आत्मा प्रसन्न है कि उनके बेटे ने भाषा की गरिमा के साथ समझोता नही किया। नीरज को बहुत स्नेह और आशीर्वाद। 
- Anirudh Umat  
24 January on FB 



Monday, January 12, 2015

नीरज दइया की कविताओं में.....












बीकानेर/11 जनवरी/राजस्थानी और हिंदी के वरिष्ठ कहानीकार-व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि नीरज दइया की कविताओं में घर-परिवार और साहित्य समाज के चित्रों में निरपेक्ष भाव से सहज-सरल कवि-मन को देखा जा सकता है। वे कविता में नए प्रयोगों और सहजता-सरलता में मार्मिकता के लिए अपनी पीढ़ी में उल्लेखनीय और वरेण्य कवि के रूप में सम्मान के अधिकारी है। वे मुक्ति संस्था परिसर में आयोजिय डॉ. नीरज दइया के एकल राजस्थानी काव्य-पाठ के अवसर पर अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे जिन सृजनधर्मियों से बेहद उम्मीद रहती रही है उनमें से एक दइया का नाम मैं प्रमुखता से लेता रहा हूं।

सांस्कृतिककर्मी एवं कवि राजेंद्र जोशी ने कहा कि कविताओं में कवि का अपना अलग मुहावरा है जो राजस्थानी भाषा में ही संभव है। नीरज दइया की राजस्थानी भाषा, कविता और कवियों को लेकर जो कविताएं है उनमें सरलता-सहजता के साथ सूक्ष्मता भी देखी जा सकती है। प्रख्यात कवि-कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि नीरज दइया अपनी कविताओं में संवाद को लेकर कविता संभव करते हैं, संवाद के साथ-साथ प्रभावी व्यंग्य-बोध भी मोहक है परंतु कवि को चाहिए कि वह कविता के अन्य अनेक घटकों पर भी हाथ अजमाते हुए विभिन्न भंगिमाओं द्वारा राजस्थानी कविता को समृद्ध करेंगे। 

कवि-कहानीकार श्रीलाल जोशी ने कहा कि कविताओं में पाठ के स्तर पर अनेक मार्मिक प्रसंग उजागर होते हैं वहीं कुछ कविताओं में भाषा के स्तर पर चूंकी खुद आलोचक हैं तो आलोचक के दृष्टिकोण से भी अपनी कविता-यात्रा को जांचते हुए इसे सतत रखने की आवश्यता बतायी। वरिष्ठ कहानीकार एवं मरवण के संपादक भंवर लाल ‘भ्रमर’ ने कहा कि यह बेहद हर्ष का विषय है कि डॉ. नीरज दइया विविध विधाओं में समानाधिकार से सृजन-परंपरा को समृद्ध करने में सक्रिय बने हुए है। वे आलोचना के क्षेत्र में जितने चर्चित हैं मैं कामना करता हूं कि उनता ही यश उनको उनकी कविता के लिए मिले। कवि-कथाकार नवनीत पाण्डे ने कहा कि जब एक रचनाकार विविध विधाओं में एक साथ सक्रिय होता है तब उस रचनाकार की केंद्रीय विधा के विषय में विर्मश किया जाना चाहिए और मुझे लगता है कि नीरज दइया के आलोचकीय रूप उनकी कविता-यात्रा को समर्थ बनाता है, वे मूलतरू अच्छे कवि ही हैं और यह होना उनकी आलोचना को संवेदनशीलता से पोषित रखता है। कार्यक्रम में आलोचक-कवि नीरज दइया ने शीघ्र प्रकाश्य कविता-संग्रह ‘पाछो कुण आसी’ से की चयनित कविताओं में छोड़ो जावण दो, छोड़ो जावण दो, मायनो चावूं, अरदास, मिरगलां नै घोखो, म्हैं उडीकूं कविता, ना मांगजै इण पेटै कोई हिसाब, संपत, घर बाबत, थाळी अर हथाळी, थे ओळखो तो हो कविता तथा पाछो कुण आसी जैसी छोटी एवं लंबी कविताओं के साथ धीरज,प्रेम, नाटक, इंदर-धनुस, मूडै पाटी, निरायंत, ऊंठ, चालो माजी कोटगेट जैसी गद्य-कविताएं का पाठ प्रस्तुत किया।









(1) राजस्थानी कवितावां - www.rajasthanikavita.blogspot.com
(2) कविता कोश में - www.kavitakosh.org
(3) कृत्या  www.kritya.in

Thursday, January 08, 2015

हिंदी मेरे संस्कारों की भाषा है : कवि राज हीरामन



बीकानेर । हिंदी मेरे संस्कारों की भाषा है तथा आज के युग में भाषा और संस्कृति को बचाना बेहद जरूरी हो गया है। यह मर्म की बात मुझे स्वामी कृष्णानंद ने 14 वर्ष की आयु में समझा दी और उसी के बल पर मॉरीशस और स्वामी कृष्णानंद का शिष्य नहीं वरन एक बेटा आप सब के सामने खड़ा हूँ। उक्त उद्गार मॉरीशस निवासी प्रख्यात लेखक कवि राज हीरामन ने अपने नागरिक अभिनंदन के पश्चात् बोलते हुए व्यक्त किए।
स्थानीय ढोला मारू टूरिस्ट बंगला में स्वामी कृष्णानंद फाउण्डेशन तथा मुक्ति संस्था के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री राज हीरामल नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नगर निगम के महापौर एडवोकेट नारायण चौपड़ा ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द की श्रेणी के स्वामी कृष्णानंद ने जीवन पर्यंत मानव-जाति की सेवा का लक्ष्य लेकर अनेक यात्राएं की तथा परिवर्तन की क्रांति के अग्रदूत बने। राज हीरामल के लेखन तथा साहित्यिक सेवाओं पर अतिरिक्त जिला कलेक्टर नगर अजय कुमार पाराशर ने बोलते हुए कहा कि जैसे विवेकानन्द ने शिकागो में जो सनातन धर्म की पताका लहराई , वैसा ही कार्य स्वामी कृष्णानन्द ने मॉरीशस में किया और हीरामल साहित्य में कर रहे हैं।
मुक्ति के सचिव राजेन्द्र जोशी ने बीकानेर तथा मॉरीशस को जुड़वां करने की बात रखते हुए मॉरीशस में संस्कृति-साहित्यिक यात्रा पर जाने की बात कही। नागरिक अभिनंदन के समन्वयक व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं को रेखांकित किया। नई दिल्ली से आए विशिष्टि अतिथि उद्योगपति कपिल धींगड़ा ने मानव जीवन और सेवा से संबंधित संस्मरण सुनते हुए स्वामी जी की शिक्षाओं को दैनिक व्यवहार में अपनाने की बात कही।
विशिष्ट अतिथि भंवर पृथ्वीराज ने कहा कि इन्सान जन्म से किसी धर्म को अपने साथ नहीं लाता । हम इन्सानियत के मर्म को समझते हुए स्वामी जी के उपदेशों का प्रचार-प्रसार कर जन-धन के कल्याण हेतु कार्य करें।
विशिष्ट अतिथि पत्रकार-साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि साहित्य सेवा भी मानव सेवा ही है। वह समाज को नई दृष्टि देता है। मॉरीशस निवासी राज हीरामल बीकानेर और मॉरीशस के रिश्तों को मजबूत बनाने के कार्य करें।

कवि डॉ. नीरज दइया ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया तथा हिंगलाज दान रतनू , गिरिराज सिंह बारहठ सहित अनेक विद्वानों -साहित्यकारों ने विचार प्रकट किए। आभार ज्ञापन कवि-संपादक भवानी शंकर व्यास विनोद ने किया तथा कार्यक्रम का संचालन आनंद वी. आचार्य ने किया।

Wednesday, January 07, 2015

हिंदी मेरे संस्कारों की भाषा है : कवि राज हीरामन

बीकानेर । हिंदी मेरे संस्कारों की भाषा है तथा आज के युग में भाषा और संस्कृति को बचाना बेहद जरूरी हो गया है। यह मर्म की बात मुझे स्वामी कृष्णानंद ने 14 वर्ष की आयु में समझा दी और उसी के बल पर मॉरीशस और स्वामी कृष्णानंद का शिष्य नहीं वरन एक बेटा आप सब के सामने खड़ा हूँ। उक्त उद्गार मॉरीशस निवासी प्रख्यात लेखक कवि राज हीरामन ने अपने नागरिक अभिनंदन के पश्चात् बोलते हुए व्यक्त किए।
स्थानीय ढोला मारू टूरिस्ट बंगला में स्वामी कृष्णानंद फाउण्डेशन तथा मुक्ति संस्था के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री राज हीरामल नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नगर निगम के महापौर एडवोकेट नारायण चौपड़ा ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द की श्रेणी के स्वामी कृष्णानंद ने जीवन पर्यंत मानव-जाति की सेवा का लक्ष्य लेकर अनेक यात्राएं की तथा परिवर्तन की क्रांति के अग्रदूत बने। राज हीरामल के लेखन तथा साहित्यिक सेवाओं पर अतिरिक्त जिला कलेक्टर नगर अजय कुमार पाराशर ने बोलते हुए कहा कि जैसे विवेकानन्द ने शिकागो में जो सनातन धर्म की पताका लहराई , वैसा ही कार्य स्वामी कृष्णानन्द ने मॉरीशस में किया और हीरामल साहित्य में कर रहे हैं।
मुक्ति के सचिव राजेन्द्र जोशी ने बीकानेर तथा मॉरीशस को जुड़वां करने की बात रखते हुए मॉरीशस में संस्कृति-साहित्यिक यात्रा पर जाने की बात कही। नागरिक अभिनंदन के समन्वयक व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं को रेखांकित किया। नई दिल्ली से आए विशिष्टि अतिथि उद्योगपति कपिल धींगड़ा ने मानव जीवन और सेवा से संबंधित संस्मरण सुनते हुए स्वामी जी की शिक्षाओं को दैनिक व्यवहार में अपनाने की बात कही।
विशिष्ट अतिथि भंवर पृथ्वीराज ने कहा कि इन्सान जन्म से किसी धर्म को अपने साथ नहीं लाता । हम इन्सानियत के मर्म को समझते हुए स्वामी जी के उपदेशों का प्रचार-प्रसार कर जन-धन के कल्याण हेतु कार्य करें।
विशिष्ट अतिथि पत्रकार-साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि साहित्य सेवा भी मानव सेवा ही है। वह समाज को नई दृष्टि देता है। मॉरीशस निवासी राज हीरामल बीकानेर और मॉरीशस के रिश्तों को मजबूत बनाने के कार्य करें।
कवि डॉ. नीरज दइया ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया तथा हिंगलाज दान रतनू , गिरिराज सिंह बारहठ सहित अनेक विद्वानों -साहित्यकारों ने विचार प्रकट किए। आभार ज्ञापन कवि-संपादक भवानी शंकर व्यास ‘ विनोद ’ ने किया तथा कार्यक्रम का संचालन आनंद वी. आचार्य ने किया।

Monday, January 05, 2015

पैली पीढी रा कहाणीकार अन्नाराम ‘सुदामा’

साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और 
मुक्ति संस्था, बीकानेर के आयोजन में पठित पत्र / नीरज दइया
लोकथावां रै मायाजाळ सांम्ही आधुनिक कहाणी नै ऊभी करण मांय सिरै कहाणीकार अन्नाराम सुदामा (1923-2014) रो नांव हरावळ मानीजै। पैली पीढी रा कहाणीकार सुदामा बरसां पैली आपरै पैलै कहाणी संग्रै- आंधै नैं आंख्यां” (1971) री भूमिका में लिख्यो हो- राजस्थानी में कहाणी साहित्य री कमी है। है जिको घणखरो पुराणी खुरचण खार जीवै इसो। बींनै अलग-अलग आदम्यां, न्यारा-न्यारा गाभा पैरार आप आपरै ढंग सूं सजावण री सस्ती चेष्टा करी है, मूळ में कोई अंतर को आयोनी। केयां, संकलन अर संपादन, भूमिका में दो शब्द अर बीं में ही दो-दो पांती घाल, कथा साहित्य रो खासो भलो उपकार कियो है पण ऐ आसार कीं सीमा तांई ही ठीक हुवै। वर्तमान भी कठै न कठै, मोटो महीन चित्रित हुणो चाहीजै। बींरी पूर्ति अतीत सूं थोड़ी ही हुसी....।कहाणीकार अन्नाराम सुदाम वर्तमान रै मोटो-महीन चित्रण अर अतीत सूं मुगती री बात उण दौर मांय करी जद लोककथावां रै संकलन-संपादन रो काम घणो जोरां माथै हो। कहाणी-जातरां री संभाळ करतां कहाणीकार अन्नाराम सुदामा री कहाणियां माथै बात करणी जरूरी लखावै। चाळीस बरसां सूं बेसी सुदामा जी री कहाणी सिरजण-जतरा च्यार पोथ्यां- आंधै नैं आंख्यां (1971), गळत इलाज (1984), माया रो रंग (1996) अर ऐ इक्कीस (2011) मांय जगमगावै।

 ऐ इक्कीसराख्यो। किणी कहाणीकार री कहाणी-जातरा बाबत बात करता आलोचना नै बगत अर कहाणीकार री दीठ माथै ध्यान देवणो चाइजै। बरस 1971 मांय कहाणी-संग्रै आंधै नैं आंख्यासूं सुदामा जी जिकी जातरा चालू करी बा जातरा 2011 तांई चालू राखी। राजस्थानी कहाणी अर लोककथा री संभाळियोड़ी पूरी भाषा नै बां आपरै पैलै कहाणी-संग्रै आंधै नैं आंख्यांरी पांचू लांबी कहाणियां रै मारफत बदळर नुंवै ढाळै ढाळण री तजबीज करी। फेल-पास री बात पछै पण परंपरा मांय आ नुंवी भाषा नै सोधण री खेचळ ही। वयण सगाई अर वचनिका री खास बुणगट मांय जिण ढाळै हिसाब राखीजै, उणी ढाळै सुदामा री इण नुंवी भाषा मांय ओळी-ओळी भाव-साम्य भेळै ऊभा बिम्बात्मक दीठावां रो पूरो हिसाब दीसै। आ रसभरी मनमोवणी भाषा किणी प्रयोग री तजबीज ही सांम्ही ही। लखावै कै उण बगत कहाणीकार नै आपरी इण नुंवी भाषा मांय रचीजी आं कहाणियां री गढत अर पूग माथै जराक अभरोसो रैयो हुवैला। स्यात ओ ई कारण हुवैला कै भूमिका मांय आं कहाणियां पेटै कै कांई कैवणी चावै कहाणीकार खुद आगूंच बां लिख्यो। इण पछै रा तीनूं कहाणी-संग्रै देख सकां जठै कहाणीकार आपरी कहाणियां रा मायना भूमिका लिखर प्रगट नीं करिया।
ओ संजोग है कै आं च्यारू पोथ्यां मांय इक्कावन कहाणियां है अर अन्नाराम सुदामा आपरै छेहलै कहाणी-संग्रै रो नांव
आंधै नैं आंख्यांसंग्रै री भाषा मांय हास्य अर व्यंग्य सूं बांचणियां नै रस तो आवै पण बिम्बां री भरमार सूं कहाणी री मूळ बात अर संवेदना कठैई दब-सी जावै। कहाणी जठै दौड़णी निगै आवणी चाइजै बठै कहाणी डिगू-डिगू करती आगै बधै। कहाणीकार नुंवै गद्य री सिरजणा मांय कहाणी विधा सूं घणी घणी आंतरै निकळ जावै। सुदामा री आं कहाणियां री भाषा री आलोचना हुई अर आ पूरी भाषा-बुणगट सेवट मांय कहाणीकार दूजै रूप मांय सोधण री तजबीज कर लेवै। सुदामा जी री कहाणी जातरा मांय सेवट भाषा सूं बेसी भाव, आदर्श, जीवण-मूल्य अर संस्कार मेहताऊ हुय जावै। भाषा अर दीठ एक खास रंग-ढंग मांय लैण माथै जाणै ठेठ तांई पाटी पढावती निगै आवै। उल्लेखजोग है कै आं पाटी पढावती कहाणियां रो मूळ सुर आदर्श री थरपणा है अर इण मांय कहाणीकार आपरी सफलता दरसावै। लोक भाषा री सहजता-सरलता आं कहाणियां री मोटी खासियत मानी जाय सकै। आं सगळी बातां रै उपरांत ई कहाणीकार रो भाषा-रूप पूरी इण पूरी जातरा मांय ठैरियोड़ो-सो लखावै। प्रयोग अर इक्कीसवी सदी रै असवाड़ै-पसवाड़ै जिको बदळाव राजस्थानी कहाणी मांय निगै आवै उण भेळै आं कहाणियां नैं कोनी राख सकां। 
ग्रामीण जन-जीवण सूं जुड़ी सुदामा जी री कहाणियां मांय सामाजिक सरोकार, जीवण-मूल्य, संस्कार अर मिनखपणै री जगमगाट जाणै बगत नै दीठ देवै। आधुनिक कहाणी परंपरा मांय आं कहाणियां री आपरी एक न्यारी ओळखाण करी जावैला। कोई कहाणीकार कहाणी क्यूं लिखै? इण सवाल रा न्यारा न्यारा जबाब हुय सकै। कहाणीकार अन्नाराम सुदामा बाबत विचार करां तो लखावै कै बां आखी उमर माइत बणर कहाणियां चूळियै उतरतै मानवियां नैं लैणसर लावण री दीठ सूं करी। गळत इलाज” (1984) संग्रै री कहाणियां सूं जिकी छवि कहाणीकार री बणै उण सूं आगै री कहाणियां मांय बो मुकाम बणायो राखै। बै औस्था रै बंघण सूं मुगत रैयर ढळती उमर मांय लगोलग कहाणियां लिखता रैया। जसजोग बात आ कै अन्नाराम सुदामा मान-सम्मान अर पुरस्कारां पछै ई लिखणो सदीव चालू राख्यो। आकाशवाणी खातर बां केई कहाणियां लिखी जिकी लारला दोय कहाणी संग्रै मांय देखी जाय सकै। सुदामा जी नै बां रा करीबी मास्टर जी कैया करता हा। मास्टर जी री कहाणियां मांय ठेठ सूं एक आदर्श मास्टर किणी बडेरै दांई सीख सीखावतो-समझावतो मिलै।
बगत रै साथै-साथै ग्रामीण जीवण मांय शहर री हवा पूग्यां उण रै रूप-रंग मांय केई बदळाव हुया। सत-असत अर आस्थावां माथै बगत रो हमलो हुयो। इण सूं अंतस मांय सत-असत नै तोलण रा हरेक का आपरा नुंवा बाट बणग्या। कहाणी मांय जथारथ अर अंतस री दोधाचींत री पूरी पड़ताळ करीजण लागी। मिनख री इण जूझ मांय केई चितराम आंख्यां अगाड़ी किणी कहाणी रूप सांम्ही आया। मिनख रै मन मांयली जूझ रै उजळ पख रा केई केई चितरामां री ओळखाण सुदामा जी री कहाणियां सूं हुवै। आज जूनी कहाणियां नैं बांचा तद कहाणी मांय जिकी रकमां बाबत विवरण लिखीज्या बै जूना अर अणखावणा हुयग्या। पइसा-टक्का री बातां सूं कहाणी रै रचाव रै बगत रो संकेत मिलै। आजादी पछै अमीरी-गरीबी अर सेठ-सहूकारां-किसानां रा जिकी जूझ काल ही बा आज नुंवै रूप मांय मिलै। दौड़ काल की मोळी ही अर आज स्सौ कीं दौड़ मांय सामिल हुयग्यो।
नवी पीढी अर जूनी पीढी रै आंतरै नैं कहाणी फेट में आयोड़ोमास्टर अर उण रै पढायोड़ै चेलै रै मारफत राखै। कहाणी दोय स्थितियां सूं आ बात सांम्ही राखै कै जिको बालक स्कूल मांय घणो इमानदार रो बो आपरै जीवण मांय रोजगार लाग्या बा इमारदारी बिसरा देवै। इण कहाणी मांय जिको भूखो छोरो दस पइसा रा चिणा खावण खातर जणै जणै सांम्ही हाथ पसारै अर आं सगळी बातां नैं देखण विचारण आळो मास्टर ई उण नैं दस पइसा री मदद नीं कर सकै क्यूं कै उण री जेब में कोनी। महीनै रा लारला दिन है अर उण छोरै नै दस रिपिया रो मैलो सो लोट लाध जावै जिको बो हैडमास्टर नै जमा करावै। लोट रो असली मालिक मजूर ई ठाडो इमानदार निकळै अर उण री परख पछै हैडमास्टर उण नै उण रो लोट देय देवै। आ परख करावतां कहाणीकार मास्टर री जेव मांय दस पइसा री कंगाली दरसावै अर हैडमास्टर दस रिपिया रो नुंवो लोट जेब मांय सूं तुरत निकाळणो बांचणियां रै हियै सवाल ऊभो करै। पचास बरसां रै नैड़ै पूगतै कहाणीकार री मनगत विचारां तो कैयो जाय सकै कै कहाणी मांय सामाजिक उद्देश्य नै लियां ई रोग रो निदानजिसी कहाणी रै मिस इमानदारी रै पइसै अर बेइमानी रै पइसै मांय आंतरै रो पाठ पढायो जाय सकै।
आजादी पछै किसान अर गाय री बात करां तो चावा-ठावा कथाकार प्रेमचंद री ओळूं आवै। राजस्थानी कहाणी रै सीगै घणा कहाणीकारां गांव, किसान, काळ, बिखो अर समाजू-रूढियां नै लेयर कहाणियां लिखी है। अन्नाराम सुदामा री कहाणियां अलग इण खातर मानीजै कै आं री कहाणियां मांय सगळी तकलीफां रै उपरांत मिनख री हूंस बधावण री विचारधारा मिलै। किसान रै जीवण मांय गाय री लालसा री कहणी है- ढळै डूंगर : फळै चट्टानबोधकहाणी मांय गांव री जूनी जमीन मूळ मांय है अर आंधै नैं आंख्यांप्रतीकात्मक कहाणी है। इणी ढाळै आगै चालर जीव-जगत सूं जुड़ी सह-अस्थित्वजिसी कहाणी सुदामाजी लिखी तो काळ अर जीवण री हूंस नै परोटतां अटूटकहाणी ई लिखी। ऐ कहाणियां हियै तांई पूगै अर मरम नै परस करै। संजोग री करामत सूं सजी आं कहाणियां मांय केई कहाणियां इत्ती सरल अर सहज है कै आं नैं बाल-कहाणियां भेळै ई राख सकां, जियां कै अणजाण बटाऊ अर मौत रा पग पाछा आद।
अन्नाराम सुदामा प्रगतिशील अर जूनी मानसिकता रा एकठ कहाणीकार है। सेठ-साहूकारां रै सोसण अगाड़ी गरीबां री पुकार आं री कहाणियां मांय साफ सुणी जाय सकै। गळत इलाजरी कहाणियां मांय जठै समाजिक जथारथ दीसै बठै ई भावुकता अर ब्राह्मणवाद री सींव ई देख सकां। अंधार-पख रै सांम्ही ऊजळ-पख नै पोखतै मिनखां री कहाणियां लिखी जावणी चाइजै पण फगत एक री बात करियां काम कोनी चाल सकै। आं कहाणियां मांय हरेक मनगत नै कहाणीकार एक रूढ भाव सूं देखण-परखण री बाण पोखै। माया रो रंगअर ऐ इक्कीसकहाणी संग्रै आं बातां नै पुखता करै।
सागी पगांकहाणी मांय राजपूतां रो छोरो लकड़्यां बेचर परिवार रो गाड़ो गुड़कावै तो उण सांम्ही कहाणीकार समाज रै सेठ-सेठाणी अर गुरुजी रै मिस न्यारै न्यारै वर्गां री मनगत दरसावै। ओ सागण जथारथ कहाणी गुनैगारमांय गाडो आळै रसूल रै मारफत दूजै रूप मांय सांम्ही आवै। अठै गरीब आदमी री इमानदारी अर अमीर आदमी री बेइमानी दीसै। दोनूं ई कहाणियां री पीड़ मरम नै परस करै- राजपूत छोरै रै बाप री मौत अर रसूल री भांणजी री मौत भला ई साच मांय हुई हुवैला पण आं कहाणियां री भावुकता लखावै। असल मांय आं कहाणियां रो जथारथ बदळतै समाज रो जथारथ तो है, पण कहाणीकार बरस 1984 मांय छप्यै इण कहाणी-संग्रै मांय जाणै कठैई बिसाई खावतो-सो जावै। असल मांय ओ दीठ अर बुणगट पेटै ठहराव है जिको आगै रै दोनूं संग्रां मांय देख सकां। कहाणी सुलतान नेकी रो सम्राटमांय ईमानदारी लूंठो दरसाव है। कहाणी मांय खरै मिनखां नै जीवण सूं नित जूझ मांडता देखां तद सावल उपजै कै उण नै रो ओ भोगणो-भुगतणो नित रो क्यूं पांती आवैकहाणियां मांय जीवण री त्रासदी झेलता यादगार पात्रा मांय एक गोपी म्हाराज है जिका रो धन खायगळत इलाजकहाणी मांय सेठाणी रै मरियां बां नै गूंग चढ जावै। कहाणीकार कैवणी चावै कै समाज मांय इण ढाळै री बीमारियां रा सगळा इलाज गळत ई हुया करै। इणी ढाळै कहाणी सूरज री मौतदोलड़ी-कथानक री कहाणी मांय सेठ अर गाड़ै आळै हुसैनियै रै मारफत कहाणीकार पूरी व्यवस्था माथै सवाल उठावै- गरीब अर अमीर मांय फरक क्यूं? गरीब नै सेवट मरणो क्यूं पड़ै?
कहाणी सूरज री मौतरी  एक ओळी है- सेठ बरस चाळीसेक रो हुवैला। मोटो पेट, जाडी साथळां, ओछी पींड्यां, भारी बूकिया अर रंग रो टेलीफून।कवि-आलोचक अर्जुन देव चारण आपरी पोथी राजस्थानी कहाणी : परंपरा-विकास” (1998) मांय इणी प्रसंग पेटै लिख्यो है- सेठ नै काळौ नीं कैय टेलीफोन कैय लेखक स्यात्‍ सोचियौ होवैला कै वो एक सांतरी उपमा सोधी है पण वो आ बात भूलग्यौ कै आजकाल केई रंग रा टेलीफोन बाजार में आयगिया है इण सारूं कहाणी पढणियौ इण सबद नै पढतां ई उणरै सीधै अरथ नै पकड़ नीं सकैला।इणी ओळी पेटै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी सूं प्रकाशित आधुनिक कहाणी रै प्रतिनिधि संकलन उकरास” (1991) री भूमिका पेटै संपादक सांवर दइया रा विचार है- अठै रंग रो टेलीफून लेखक रै उणी पुराणै मिजाज री याद दिरावै। ठीक है, टेलीफून रो रूढ रंग काळो ई हुवै अर काळो रो ई अरथ देवै, पण आजकाळै तो भांत भांत रै रूपाळै रंगांवाळा टेलीफून कोनी बापरग्या कांई?” (पेज-14) दोनू बातां आपरी जागां ठीक है पण कहाणी माथै उण रै रचाव, रचनाकाल अर लेखक री दीठ सूं विचार करिया कैयो जाय सकै कै उण बगत फगत एक काळै रंग रो टेलीफोन चलस में आयो हो। बियां तो आ तुलना ई खोटी है, किणी पण मिनख रो रंग इत्तो काळै नीं हुवै अर इण ढाळै री तुलना अतिश्योक्ति ई कैयी जावैला।
ठूंठ कहाणी मांय मालण डोकरी रै पोतै भेळै पढतै छोरै रो लगाव प्रगट हुवै पण ओ लगाव जित्तो जूनी पीढी री डोकरी संभाळ राखै उत्तो नुंवी पीढी रो डाकधर कोनी राखै। अरथ री आ दौड़ इण बगत रो जथारथ है अर कहाणी मांय डोकरी रो जिको मोह बोलै बो आज लारै छूटग्यो। ओ आज रै बगत रो सांच है। इण कहाणी रै मारफत कहाणीकार इण सूं न्यारी बात कैवै कै ओ मोह याद रैवणो चाइजै हो। साची आ धन री दौड़ आंधी है। आज रै जुग रो सांच है- डोकरी वाळै जूनै मोह नै बिसर जावणो। अन्नाराम सुदामा कहाणी जातरा मांय इणी खातर याद करिया जावैला कै बां मिनखपणै री केई बातां समझावण रो जतन करियो।
अन्नाराम सुदामा री कहाणियां रै केंद्र मांय- बाल-विवाह, सुगन-विचार, जीव-दया, छुआ-छूत, स्वाभिमान, आत्म-सम्मान, ईमानदारी, पाड़ौस-धर्म, अंध-भगती, जबान रो मोल, दया, संस्कार, संबंध, स्वार्थ आद मिलै। कहाणीकार रै पात्रां मांय घणखारा पचास रै आसै-पासै रा पात्र है। आपसी सम्पत अर सद्भाव सूं मेळ-मुलाकाती आं पात्रां रो सोच लूंठो है। जियां कै आगूंच जिण धन री आंधी दौड़ री बात करी उण पेटै कहाणीकार री आ थरपणा सरावणजोग है कै आज रै जुग मांय धन ई स्सौ कीं नीं हुवणो चाइजै। दोय उल्लेखजोग कहाणियां री चरचा जरूरी है। कहाणी सूझती दीठमांय दूध अर अखंड जोतमांय धी नै बेचण री बात है। आज रै जुग मुजब हरेक खुद रो नफो विचारै। कीं बेसी धन मांय खुद रो लाभ विचारण रै इण जुग सांम्ही आं कहाणियां रा पात्र दूध अर घी रै बेच्या पछै उण रै उपयोग नै विचारता नफो करता जाणै घाटै नै अंगेजै। तुळछी रो हवेली रै बारकर दूध री कार निकाळण नै दूध का मीरां बाई रो सेठ चूनीलालजी रै रामशरण हुयां घी नै अंखड़ जोत करण खातर नटणो घणो अबखो काम है। आज ओ रूप कठैई देखण नै कोनी मिलै। ओ रूप अर सोच हुय सकै आ दरसावणो कहाणीकार री लांठी सोच है। दूध-घी मिनखां खातर है इण ऐळो गवाण सूं कांई सरै। इण ढाळै री आं कुरीतियां रो छेड़ो कोनी।
सुदामा री खासियत आ कै हरेक कहाणी मांय याद रैवण जोग कथानक है। हरेक कहाणी री आपरी कहाणी है। कहाणी रो प्रभाव इत्तो कै उण मांय पूग्या पछै जाणै कीं बातां हियै रै आंगणै सदा खातर मंड जावै। कहाणी रा पात्र-वातावरण अर संवाद चाहे बिसर जावां पण मूळ मुद्दो जिको कहाणी कैवै बो अंतस मांय बैठ जावै। बेटी रो बापकहाणी मांय बेटी रो बाप सगै नै पूछै- जान में मालकां आदमी अंदाजै कित्ताक हुयज्यासी?” अर बेटै रो बाप जान री गिणती अस्सी-नब्बै सूं चालू करै फेर बात दोय सौ पन्द्रै माथै आयर टिकै। हुवै आ कै जान बधती बधती इण आंकड़ै नै पार करर डौढसै नेड़ा बेसी बध जावै। आयी जान सूं बेटै रो बाप किण नै पाछो भेजै अर आपरी शान मांय विचारै कै बेटी रो बाप मत्तैई ढीलो हुसी। उल्लेखजोग है कै बेटी रो बाप आपरी बात माथै अडिग रैवै। उण री हिम्मत इणी बात माथै जान नै पाछी करी। हुय सकै ओ सांच गळै कमती उतरै। मूळ बात आ है कै ब्यांव-सावा मांय मिनख नै खुद री बात री लाज अर सगै री पागड़ी री चिंता करणी चाइजै। आ कहाणी मिनखां बिचाळै आपरी बात री आण राखण री पाटी पढावै।
अन्नाराम सुदामा री कहाणियां सांस्कृतिक मोल नै कहाणी मांय आब दांई संभाळै। भारतीय संस्कृति मांय गाय पूजनीक मानीजै अर गाय नै लेयर इणी मनगत री कहाणी आंख्यां खुलगीमांय बेटो छियां बैठी बूढ़ी गाय रै लात मारै तद उण नै उण रो पूरो विगत मा बतावै अर बेटै री आंख्यां खुल जावै। जीव-दया अर गाय रै पूजनीक भाव मांय कहाणी जीवण अर जूझ सूं जुड़ नीं पावै जद कै नृसिंह राजपुरोहित री कहाणी ओळमौरो अंत आदर्शवादी हुयां रै उपरांत ई पूरी कहाणी डोकरी अर बूढ़ी गाय री जूझ नै बदळतै लोक-व्यावहार भेळै जाणै सजीवण कर देवै। आं कहाणियां रा सतवादी पात्र आपरै चरित्र अर व्यवहार रै पाण साख मांडता निगै आवै। कहाणी ऊंची अर अटूटमांय टाबरां नै बोरियां देयर लाड लडावती मालण डोकरी आपरै सत माथै अडिग रैवै। बाट भलाई भाठै रै ढगळियां रा हुवै पण बै खरा अर खरा सूं ई सवाया लाधै। कमाई अर जीवण रो मरम बखाणती कहाणी सेवट पाठ पढावै अर पाठ पढावणो कहाणी रो कोई दोस कोनी। चालतो-चालतो सोचै हो, कांई लुगाई है अटूट अर ऊंची, कंगाली सैंदे ईं रै ओरियै आगै आई खड़ी है पण बा ईं रै काळजै री दातारी कांनी देखली, ओरियै में बड़नो तो अळगो, बींरी थळी पर पग राखण री हिम्मत नीं जुटा सकै। आप लूखो दळियो, बो ही सायत खुरचण हुयोड़ो अर आयोड़ै नै दूध री गिलास? देणै में इसो सुख, न किरोड़पति ही ले सकै अर न कोई धजाधारी मैंत ही।” (पेज-81)
असल मांय आपां राजस्थानी कहाणी जातरा मांय एक धारा रै रूप मांय आं कहाणियां नै बखाण सकां। मा, टाबर अर दूध री कहाणी मोह-भंगसीधी-सीधी बात समझावै कै मा जे खुद रै दूध सूं टाबर नै दूर दोनूं नैं नुकसाण है। टाबर कमजोर रैवैला अर मा नै स्तन कैंसर हुवैला। रूप रै जाळ मांय आधुनिक समाज इण ढाळै काळीधार मांय डूब जावैला। कहाणी गळतो गरभमांय मास्टर री आ मनगत विचारण लायक है, इण मांय आजादी पछै हवेली अर झोंपड़ी रो आंतरो कहाणीकार बखाणै-हूं बीं हवेली में पढ़ावण जांवतो। जीवण सागै जूझतै ईं समूह नैं सरसरी अर उड़ती निजर सूं नहीं आंख्यां गडोर काई ताळ देखतो अर फेर चालतो-चालतो आंरी उळझी अवस्था अर टूटती-संधती दिनचर्या पर सोचतो कै छात तो खैर आंरै पांति नीं आई हुसी, चालो टाळ सही पण आंरी आंतां नै आटो अर कीं लगांवण, फाटेसर गाभो अर मैल निचोंवण नैं कोई साबण री किरची तो मिलणी ही चाइजै? इसो आं कांई अपराध कियो है, जीं खातर आंनै आ अणचाई कैद भोगणी पड़ै।ई देस में जाया-जलम्या, गंगा-जमना री सरसता आंरै खून सागै दौड़ै, बद्री-रामेसर अर आखै हिमाचळ रो हेत आंरी चेतना पर उछळै, आंरी राय जद संसद अर विधानसभा तांई आंकीजै तो बीं राज-राष्ट्र में आंरो कीं हक नीं बणै? ऐ रोटी नहीं रोजी चावै, घर नहीं जाग्यां चावै अर चावै वादा नहीं, ऊंचो आंवतो साच। गळती तो कठै न कठै है ही पण बींनै समझै कुण, अर कुण बींनै सुधारै?” (पेज-53) कहाणीकार री आ टीप बां री भावनावां नै प्रगट करै। काम करण आळा नित खाड़ो खोदर पाणी पीवण वाळा ई जीवण रै तोल-मोल मांय इत्ता लांठां कै ठाकर दांई कमतरिया ई धरमादो रो भार कोनी लेवै। 
अन्नाराम ‘सुदामा’
माया रो रंगअर ऐ इक्कीसरी कहाणियां जाणै बूंदी रो किणी लाडू दांई है। लाडू मांय हरेक दाणो एक सरीखो नाप रो हुवै, उणी ढाळै इण पोथ्यां री कहाणियां मीठी गुटक अर एक नाप री बुणगट मांय रचीजी है। हरेक कहाणी किणी सीख नै पोखण आळी है। ऐ कहाणियां आपरी संभवानावां राखै कै आं सूं कीं सीखर इण कळजुग मांय मिनख-जूण संस्कारवान बणै। सींव ई आं कहाणियां री है कै इण ढाळै री कहाणियां रो चलन किणी एक बगत तांई हो। लगै कै बरसां पैली लिख्योड़ी सुदामा जी री ऐ जूनी कहाणियां घणी पछै पोथी रूप सांम्ही आयी हुवै। कहाणी जातरा मांय आज रै दिन कैयां सरैला कै कहाणीकार बगत परवाण कहाणी नै उण रै नुंवै रूप मांय ढाळ नीं सक्यो। इण बात माथै किणी नैं कोई संका नीं हुवैला कै कहाणी जातरा मांय सुदामा जी री आं कहाणियां री महताऊ ठौड़ है।
- नीरज दइया 







 राजस्थानी साहित्य में आलोचना का जिम्मा रचनाकार लें

बीकानेर।राजस्थानी साहित्य में हर विधा पर बहुत सृजन हो रहा है पर उसकी तटस्थ और सही आलोचना नहीं हो रही। आलोचना के इस महत्त्वपूर्ण कार्य को अब रचनाकार को ही करना होगा। आलोचना के अभाव में सृजन का सही मूल्यांकन ही नहीं हो पा रहा है। यह कहना है राजस्थानी कवि आलोचक और नाटककार डॉ. अर्जुन देव चारण का। साहित्य अकादमी, दिल्ली और मुक्ति संस्थान की ओर से होटल राजमल में आयोजित आधुनिक राजस्थानी कहानीविषय परिसंवाद में उन्होंने यह विचार व्यक्त किए। इस परिसंवाद में राजस्थानी के 20 कहानीकारों के अलावा युवा महिला रचनाकारों के सृजन पर चर्चा हुई।
उद्घाटन करते हुए कथाकार भंवरलाल भ्रमर ने कहा कि स्वानुभूतियों का संवेदनात्मक सृजन ही कहानी है। राजस्थानी कहानी के गंभीर मूल्यांकन की अब भी जरूरत है। साहित्य अकादमी के प्रशासनिक अधिकारी शांतनु गंगोपाध्याय ने स्वागत भाषण दिया। संयोजकीय वक्तव्य राजेन्द्र जोशी ने दिया। आभार रंगकर्मी सुरेश हिन्दुस्तानी ने जताया।
पहला सत्र
इस सत्र में डॉ. नीरज दइया ने मीठेश निर्मोही, भंवरलाल भ्रमर, अरविंद आसिया, डॉ. मदनगोपाल लड्ढ़ा कहानियों की समीक्षा की। डॉ. चेतन स्वामी ने रामस्वरूप कसान, रामेश्वर गोदारा, सत्यनारायण सोनी और डॉ. भरत ओळा के कथा संसार की पड़ताल की। अध्यक्षीय उद्बोधन में कवि मोहन आलोक ने कहा कि कथाकारों को स्वयं अपना विश्लेषण करते रहना चाहिए, सृजन में इससे सुधार आएगा।
दूसरा सत्र
इस सत्र में कवि-कथाकार मीठेश निर्मोही ने मालचंद तिवाड़ी, मदन सैनी, मनोहरसिंह राठौड़ और माधव नागदा की कहानियों पर समीक्षा पत्र पढ़ा। कथाकार बुलाकी शर्मा ने नन्द भारद्वाज, मधु आचार्य आशावादी’, डॉ. चेतन स्वामी और रामपालसिंह के कथा साहित्य की समीक्षा की। अध्यक्षीय संबोधन में रामस्वरूप किसान ने कहा हर रचनाकार को स्वयं के विचारक आलोचक को सचेत रहते हुए कहानी लिखनी चाहिए।
तीसरा सत्र
परिसंवाद के इस अंतिम सत्र में मालचंद तिवाड़ी ने बुलाकी शर्मा, सीपी देवल, श्याम जांगीड़ प्रमोद कुमार शर्मा के कथा साहित्य की समीक्षा की। राजेन्द्र जोशी ने राजस्थानी के युवा महिला कहानी लेखन पर पत्र पढ़ा। अध्यक्षीय उद्बोधन में मधु आचार्य ने कहा कि कहानी पहले लेखक अपने मन में लिखता है और उसके बाद कागज पर उतारता है।
होटल राजविलास में आयोजित परिसंवाद कार्यक्रम अैनाणमें बोलते साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ. अर्जुनदेव चारण।
ये रचनाकार रहे साक्षी
नवनीत पांडे, सुमन बिस्सा, आनंद कौर व्यास, मोनिका गौड़, शंकरसिंह राजपुरोहित, रचना शेखावत, पीआर लील, ओपी शर्मा, मोहियुदीन माहिर, कमल रंगा, आनंद वि आचार्य, नमामी शंकर, शमीम बीकानेरी, डॉ. मेघना शर्मा, सत्यनारायण, रवि पुरोहित, जयकिशन केशवानी, रमेश भोजक समीर, सुनील गज्जानी, हीरालाल हर्ष, हजारी देवड़ा आदि परिसंवाद के साक्षी रहे।

Sunday, January 04, 2015

साहित्य अकादेमी द्वारा एक दिवसीय कार्यक्रम

साहित्य अकादेमी नई दिल्ली और मुक्ति संस्था बीकानेर द्वारा बीकानेर में आधुनिक राजस्थानी गद्य के अग्रिम पंक्ति के रचनाकारों सर्व श्री विजयदान देथा, अन्नाराम सुदामा, यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ एवं राणी लक्ष्मीकुमारी चूडावत के साहित्यिक अवादन पर केंद्रित एक दिवसीय कार्यक्रम में कहानीकार अन्नाराम ‘सुदामा’ की कहानी-यात्रा पर पत्र-वाचन करने का अवसर मुझे मिला। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में डॉ. मेधराज शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित एवं डॉ. भरत ओला ने भी इस सत्र में अपने पत्रों का वाचन किया। सत्र का संचालन श्री संजय आर्चय वरुण ने किया। साहित्य अकादेमी के संयोजक श्री अर्जुनदेव चारण एवं मुक्ति के सचिव श्री राजेंद्र जोशी का आभार। चित्र : भाई श्री रमेश भोजक समीर एवं श्री नवनीत पाण्डे।













डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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