Sunday, April 24, 2016

डॉ.मंगत बादल की रचनाधर्मिता / डॉ. नीरज दइया

       

बहु-आयामी साहित्यकार डॉ.मंगत बादल की रचनाधर्मिता
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डॉ. नीरज दइया

            राजस्थान के साहित्यिक परिदृश्य की बात करें तो आज डॉ. मंगत बादल एक ऐसा नाम है जिनकी रचनाधर्मिता के अनेक आयाम हैं। आपने विपुल मात्रा में हिंदी और राजस्थानी में सतत साहित्य-सृजन कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। गंगानगर जिले के साहित्य पर एक आलेख लिखते हुए मैंने डॉ. बादल को महाकवि कहा, क्योंकि इक्कीसवीं सदी में दसमेस महाकाव्य, मीरां प्रबंध काव्य अथवा सीता, कैकेयी खंड काव्य का सृजन असल में हमारी साहित्यिक परंपरा को बचाना है। ऐसे नाम हमारे बीच बहुत कम मिलेंगे जिन्होंने छंद को साधते हुए परंपरा को आधुनिक स्वर दिए हैं। दसमेस अथवा मीरां जैसी कालजयी कृतियों के मूल्यांकन हेतु राजस्थानी आलोचना को आयुधों का निर्माण करना शेष है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि छंद के साथ आपने मुक्त छंद में भी पर्याप्त और समान रूप से सृजन किया है।
            गुरु गोविंदसिंह जी के त्याग, बलिदान और उपदेशों की लोक मंलगकारी जमीन पर सृजित ग्यारह सर्गों का महाकाव्य दसमेसहै। इसे राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार मिला और यह कृति पंजाबी में यह अनूदित भी हुई है। अपने युग संदर्भों के साथ कुरीतियां, आडंबर, शोषण और साम्प्रदायिक विसंगतियों के कई आयाम इस महाकाव्य में अभिव्यक्त होते हैं। मीराप्रबंध काव्य एक प्रयोग है जिसमें छंद मुक्त होते हुए भी डॉ. बादल आंतरिक लय और नाद को साधते हुए मीरा के चरित्र की विविधताओं के साथ जैसे ऐतिहासिकता का पुर्मूल्यांकन करते हैं। इस कृति को साहित्य अकादेमी दिल्ली द्वारा सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान किया गया वहीं यह इस कृति का अनुवाद पंजाबी में भी हुआ है। सीता और कैकई खंड काव्यों में कवि बादल इन चरित्रों के अंतस में उतर कर इनके द्वंद्व को उजागर करते हैं वहीं परंपरा से चली आ रही मान्यताओं और विचार को भी नए आयामों में सोचने का प्रारूप प्रस्तुत करते हैं। कविता के संदर्भ में यहां यह भी कहना उपयुक्त होगा कि राजस्थानी कविता के क्षेत्र में डॉ. मंगत बादल को कृति मीरांके विविध आयामों में नई भाषा-शैली के साथ आधुनिकता बोध की तलाश है और इस कृति को प्रख्यात कवि डॉ. नारायणसिंह भाटी की परंपरा में इसे देखा-समझा जाना चाहिए। किसी चरित्र को नए ढंग से नए आयामों द्वारा उद्धाटित करना आपकी काव्य-यात्रा में रेखांकित किए जाने योग्य विशेषता है।
            डॉ. बादल की रचनाधर्मिता के काव्य साहित्य के अंतर्गत मुख्य रूप से दो आयाम नजर आते हैं। एक तो वे इतिहास, परंपरा और मिथकों को नए रूपों में सहेजने-संवारने और नवीन संदर्भों में व्याख्या में सक्रियता प्रदर्शित करते हैं है। इसी के समानांतर दूसरा आयाम यह है कि आप नई कविता में अमूर्त कलात्मक वर्णनों और काल्पनिक रूमानी दुनिया से दूर रहते हैं। डॉ. बादल के रचनालोक में लोक जीवन अपने विविध रूपों और रंगों में अभिव्यक्त होता है। राजस्थान के इस भू-भाग का जीवन जैसा कैसा है वह यहां अपने अंतर्द्वंद्वों के अभिव्यक्त है। इस धरा, लोक और जीवन से जुड़े अनेक प्रश्नों के साथ समस्याओं से रू-ब-रू कराती है आपकी कविता। इस पंक्ति के प्रमाण में हिंदी कविता संग्रह मत बाँधो आकाश’, ‘शब्दों की संसद’, ‘इस मौसम में’, ‘हम मनके इक हार के’, ‘अच्छे दिनों की याद मेंऔर राजस्थानी में रेत री पुकारदेख सकते हैं। डॉ. बादल की के काव्य संसार में घर-परिवार और समाज के अनेक चित्र हैं जिनमें बदलते परिवेश में व्यक्ति के आत्म का आत्मविश्लेषन है।
            आपकी एक कविता है- लोग उम्मीद करते हैंजिसमें भविष्य की अनेक उम्मीदों के सिलसिलेवार वर्णन के पश्चात काव्य पंक्तियां हैं- लोग उम्मीद करते हैं / लोग वर्षों से
उम्मीदों के सहारे जी रहे हैं; / और रोजमर्रा की जिन्दगी को / जहर की तरह पी रहे हैं!
छाया का विरोध-पत्रकविता में डॉ. मंगत बादल लिखते हैं- मेरी शब्द रचना भी /
धरती से रस खींचेगी / और उसकी लय / पत्ते-पत्ते को / रस से सींचेगी!यहां निसंदेह आपके काव्य का केंद्रिय स्वर बहुत कम शब्दों में व्यंजित होता है। डॉ. बादल की पूरी कविता-यात्रा का जुड़ाव अपनी धरती और जड़ों से लगातार देख सकते हैं वहीं आपकी दृष्टि में पत्ते-पत्ते की अभिव्यंजना में प्रत्येक जन से जुड़ाव समझा जा सकता है।
            गद्य रचनाओं की चर्चा करें तो ललित निबंध राजस्थानी में बेहद कम सामने आए हैं और उन में डॉ. बादल की कृति तारां छाई रातका उल्लेखनीय है। एक उदाहरण से बात कहूं तो आपका ललित निबंध आंगणोहिंदी के प्रख्यात ललित निबंध लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाखून क्यों बढ़ते हैंकी श्रेणी का रेखांकित किए जाने योग्य रचना है। राजस्थानी में निबंध रचनाएं और निबंध लेखक बहुत कम है और मंगत बादल इस कम को पूरा करने में लगे हैं। आपकी कृतियां सावण सुरंगो ओसरियो, बात री बात, हेत री हांती निबंध विधा की राजस्थानी में पुस्तकें हैं वहीं आपके व्यंग्य संग्रह भेड अर ऊन रो गणित के अतिरिक्त हिंदी में यह दिल युग है, आन्दोलन सामग्री के थोक विक्रेता, छवि सुधारो कार्यक्रम व्यंग्य संकलन प्रकाशित हुए हैं। डॉ. बादल जहां निबंधों में हमारी परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों को पोषित करने में गतिशील दिखाई देते हैं। उनके यहां लोक जीवन और लोक चिक का आकर्षक वर्णन देखने को मिलता है। वहीं व्यंग्य विधा के अंतर्गत बदलते समय और समाज में परंपरा और मूल्यों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष पोषण है। किसी समस्या की तरफ संकेत करते हुए व्यंग्यकार उसे रोचकता के साथ वर्णित करता हैं। व्यंग्य लेखक असल में किसी चिकित्सक की भांति हमारी मानसिक और सामाजिक बीमारियों का इलाज करता है। निबंधों में विषयगत नवीनता और विविधता के साथ ही प्रवाहमयी भाषा-शैली से पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
            गद्य की अन्य विधाओं की बात करें तो एक कहानीकार के रूप में हिंदी में कागा सब तनतथा राजस्थानी में कितणो पाणीकहानी संग्रह प्रकाशित हैं। कहानियों में ग्रामीण जीवन और उनकी समस्याओं के साथ ही डॉ. बादल ने कुछ कथा प्रयोग भी किए हैं। परंपरागत कहानी के स्वरूप में चकवा-चकवी को अवधारणा को आपने कहानी में आधुनिक संदर्भों में प्रयुक्त किया है। आपके यात्र-वृतांत वतन से दूरमें देश और परदेश के जीवन के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन देखा जा सकता है। यह टिप्पणी डॉ. मंगत बादल की रचनाधर्मिता को पहचानने और परखने का प्रस्तान बिंदु है, ऐसे बहु-आयामी सृजनधर्मी साहित्यकार की साहित्य-साधना को हम व्यापकता और विशदता के साथ जानने-समझने का प्रयास करें।
 

Wednesday, April 13, 2016

डॉ. आईदान सिंह भाटी से डॉ. नीरज दइया की बातचीत

मूल और अनुवाद में भेद नहीं करना अनैतिक : आईजी
 (बीकानेर / राजस्थानी के ख्यातनाम लेखक डॉ. आईदान सिंह भाटी ‘आईजी’ एक कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए बीकानेर आए। इस मौके पर ‘भास्कर’ के पाठकों के लिए कवि-कथाकार-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने उनसे विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के अंश)

आप वर्षों हिंदी के प्राध्यापक रहे फिर भी राजस्थानी में ही लिखते रहें हैं, ऐसा क्यों?
आईजी- इसका पहला कारण तो राजस्थानी मेरी मातृभाषा रही और हिंदी मैंने बाद में पढ़ने-लिखने के दौरान सीखी। राजस्थानी तो जुबान के आंटे में थी इसलिए राजस्थानी में लिखता हूं।
कविता के संदर्भ में क्या भाषा माध्यम ही महत्त्वपूर्ण है या राजस्थानी में लिखते हुए भी आप खुद को एक भारतीय कवि के रूप में देखते हैं?
आईजी- मैं राजस्थानी कवि होकर ही संपूर्ण भारतीय भाषाओं के कवियों की विरादर में खड़ा होता हूं। क्यों कि अन्य भारतीय भाषाएं भी लोक भाषाएं है।
राजस्थानी के कुछ लेखक अपनी रचनाओं को दोनों ही भाषाओं में मौलिक मानते हैं, उनकी एक जैसी रचनाएं राजस्थानी और हिंदी दोनों में देखी जा सकती है?
आईजी- यह वस्तुतः गलत बात है। मैं राजस्थानी में लिखता हूं तो राजस्थानी की ही बात करूंगा, मेरी राजस्थानी कविता को मैं हिंदी की कविता कह कर प्रकाशित करता हूं तो यह कोई अच्छी बात तो नहीं है। मैं इसको नैतिकता के स्तर पर भी ठीक नहीं मानता। लेकिन जो लोग ऐसा कर रहे हैं मेरे विचार से अपना संप्रेषण न होने के कारण ऐसा कर रहे हैं।
आज के बदलते दौर में लिखना क्यों जरूरी है, या कहूं कि आप क्यों लिखते हैं?
आईजी- मुझे मेरे लिए सबसे सहज काम कविता लिखना लगता है, सहज उस रूप में नहीं है। यह ऐसी सहजता है जो मेरे द्वारा संभव है। आज कविता लिखना इतना सहज नहीं रह गया है। कविता को हासिये पर डालने के सारे उपक्रम चल रहे हैं और इसलिए मैं मानता हूं कि आज कविता की जरूरत पहले से भी अधिक है।
आपने राजस्थानी कविता का पूरा बदलाव देखा, छंद और मुक्त छंद और उसके बाद आज की कविता। इस बदलाव को आप कवि-आलोचक के रूप में कैसे देखते हैं?
आईजी-मैं समझ गया आपकी बात, छंद में लिखता था गांव में डिंगळ काव्य की परंपरा थी लेकिन जब जोधपुर आया तब लगा कि समकालीनता के लिए मुक्त छंद जरूरी है। मैं पाठ्य या पठित मुक्त छंद जैसा नहीं आज भी मैं गति लय का निर्वाह करता हूं। छंद लिख कर सीख कर हम मुक्त छंद लिखते हैं तो मैं कहूंगा कि हम निराला की तरह छंद का ही प्रयोग कर रहे होते हैं। छंद नहीं आए और कहूं मैं मुक्त छंद में लिखता हूं इसे मैं ठीक नहीं मानता।
राजस्थानी साहित्य के संवर्धन में आलोचना की स्थिति पर कुछ कहना चाहेंगे?
आईजी-कमजोर पक्ष है इसे कहें गत्यात्मक नहीं है, आपकी और अर्जुनदेव चारण की किताबें आईं। पर यह या अन्य जो लिखा गया है वह निरंतर नहीं है। इसमें गति और निरंतरता की बहुत जरूरत समझता हूं।
फेसबुक जैसी आभासी दुनिया में त्वरित टिप्पणियां होती है। क्या इसमें गंभीरता है?
आईजी-नहीं यह गंभीरता नहीं है, लेकिन आप गंभीर टिप्पणी कर रहे हैं तो यह महत्त्वपूर्ण भी है। साहित्य और लोकप्रिय माध्यम की भाषा अलग है, त्वरिक टिप्पणियां साहित्यिक नहीं व्यक्तिगत होती है। इसमें साहित्यिक मूल्यों का अभाव होता है।
एक लेखक ने कहा कि राजस्थानी के सभी लेखक हिंदी समझते हैं, वे हिंदी माध्यम से पढ़े हैं। राजस्थानी में केवल अपनी मातृभाष के जुड़ाव के वशीभूत या ऋण को चुकाने के लिए राजस्थानी में लिखते हैं। क्या राष्ट्रप्रेम में राजस्थानी को छोड़ दिया जाना चाहिए?   
आईजी- क्या हमारी लोक भाषाओं के संवेदन में राष्ट्र प्रेम है ही नहीं क्या ? क्या राष्ट्र प्रेम किसी एक भाषा में अभिव्यक्त होता है।
राजस्थानी अकादमी लेखकों-राजनेताओं की उपेक्षा के कारण बंद पड़ी है।
आईजी-सरकारों की अंतिम दृष्टि में साहित्य-कला है वे केवल फोटो खींचवाने के बहाने साहित्य-कला के उपक्रम करते हैं। सब चुप है कि कोई लाभ हमें मिलने वाल है वह वंचित न हो जाए।
ऐसे प्रतिकूल समय में साहित्यकार का दायित्व क्या है?
आईजी-लेखक को लिखते जाना चाहिए बिना किसी की परवाह किए कि कोई अकादमी है या नहीं। छपना नहीं छपना तो बाद की बात है लिखना बहुत जरूरी है। 
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अप्रगतिशील लोग नहीं समझेंगे राजस्थानी का महत्त्व
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राजस्थानी मान्यता के विषय में आपको क्या लगता है? यह हमारा सपना सच में संभव होगा?
आईजी- मैं आरंभ से ही इसका पक्षधर रहा हूं लेकिन मैं चिल्लाने वाले लोगों के साथ नहीं हूं। पिछले चालीस-पचास वर्षों से साहित्यकारों ने आंदोलन चलाया लेकिन बाजारवाद के साथ ही ऐसे लोग इस आंदोलन में आए जिनको अपने नामों और चेहरों को ही आगे करने के प्रयास करते रहे हैं। वे राजस्थानी के नाम पर सब कुछ अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं। ऐसी प्रवृतियों से आंदोलन को न केवल पीछे किया है बल्कि वे गिनती के चंद लोग लोगों की आंखों में आ गए हैं।



Sunday, April 10, 2016

बुलाकी शर्मा सूं नीरज दइया री बंतळ

§  नीरज दइया - आप लेखन कद सूं कर रैया हो?
§  बुलाकी शर्मा - नियमित रूप सूं म्हारो लेखन 1978 सूं सरू हुयो। बियां स्कूल में पढती वेळा ई म्हारी एक दो बाल कथावां कैवो कै बोध कथावां बरस 1971-72 में नवभारत टाइम्स अर दैनिक हिंदुस्तान में छपी।
§  नीरज दइया - लेखन री पैली भासा राजस्थानी ही का हिंदी?
§  बुलाकी शर्मा - राजस्थानी अर हिंदी में लगैटगै बरोबर लिखणो चालू हुयो।  
§  नीरज दइया - आप राजस्थानी अर हिंदी दोनूं भासावां में लगोलग लिखो, आपरी पैली प्रकाशित रचना हिंदी ही का राजस्थानी?
§  बुलाकी शर्मा - पैली रचना संभवत राजस्थानी ही। आप मान सको कै सरुआत राजस्थानी में करी अर बां दिनां चावी पत्रिका “झुणझुणियो” रो पैलो अंक निकळियो अर म्हनै चेतै आवै कै रचना “म्हैं लारै हूं” साम्हीं आई। इणी ढाळै डूंगरगढ़ सूं प्रकासित “राजस्थली” में ‘मिनख’ नांव री लघुकथा छपी। अर उणी टैम हिंदी में पैली व्यंग्य रचना ‘बजरंग बली की डायरी’ नांव सूं मुक्ता में छपी, उण पछै लिखणो-छपणो लगोलग चालै।
§  नीरज दइया - आप कहाणियां अर व्यंग्य विधा भेळै बाल-साहित्य ई लिख्यो। खुद री मूळ विधा किण नै मानो। आपरै हिसाब सूं आपनै व्यंग्यकार कैवां का कहाणीकार।
§  बुलाकी शर्मा - व्यंग्य रै हिसाब री बात करो तो मूळ में सरूवात व्यंग्य सूं ई हुयोड़ी है। झुणझुणियो में छपी रचना लघु हास्य व्यंग्य रचना ही अर राजस्थली में मिनख लघुकथा ई मूळ में व्यंग्य रो सुर लियां ही। म्हैं खुद नै व्यंग्यकार का कहाणीकार रूप नीं एक रचनाकार रूप मानूं। विधा तो एक माध्यम है खुद री बात कैवण रो। त्रासदी आ हुवै कै म्हारै कहाणी-संग्रै रै लोकार्पण में हैडिंग बणै “व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा के नए कहानी संग्रै का लोकार्पण”। म्हनै लागै कै म्हारी व्यंग्य रचनावां पाठकां नै बेसी आवै, सो कैय सकां कै व्यंग्यकार रूप घणो मानो। जद कै म्हारो राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी म्हनै कहाणी संग्रै हिलोरो माथै शिवचंद भरतिया गद्य पुरस्कार ई सूं सम्मान करियो। अर हिंदी व्यंग्य संग्रै दुर्घटना के इर्द-गिर्द माथै राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर सूं कन्हैयालाल सहल पुरस्कार सम्मान रूप मिल्यो। अबै आप बातावो म्हैं कहाणीकार हूं का व्यंग्यकार।
§  नीरज दइया - आप नाटक अर उपन्यास ई लिख्या हो, कांई आप रो रचनाकार कविता ई लिखी का आगै कवि रूप साम्हीं आवैला। कारण कै आपरै पैलै व्यंग्य संग्रै रो नांव हो “कवि-कविता अर घर-आळी”?
§  बुलाकी शर्मा - साची बात कै म्हैं गद्य री लगैटगै सगळी विधावां में लिखतो रैयो हूं, पण कविता हाल कोनी लिखी। कविता रै बारै मांय म्हनै लागै कविता लिखणी भाई लोग समझै जित्ती सौरी कोनी। कविता लिखणो म्हारै वास्तै मुसकिल है कारण कै म्हैं कविता नै सगळी विधावां मांय मुसकिल विधा मानूं। म्हैं समझ नीं सकूं कै आजकालै तो हरेक ई कविता मांडै अर सरूआत ई कविता सूं करै। आ कोनी कै म्हारै कविता लिख्योड़ी कोनी, लिख्योड़ी पड़ी है, बां नै बारै कोनी निकाळी कारण कै म्हैं बां नै कविता कोनी मानूं।
§  नीरज दइया - आप आपरै लिख्योड़ी कविता नै कविता कोनी मानो तो लगतै हाथ आ ई बतावो कै आप किण-किण नै राजस्थानी कवि मानो जिकां री लिख्योड़ी कविता असली कविता है?
§  बुलाकी शर्मा - राजस्थानी में कवि घणा है। किणी नै कवि हुवण अर कवि नीं हुवण रो कोई प्रमाण-पत्र देवण रो अधिकार म्हनै कोनी। हां, आं कवियां मांय म्हैं म्हारी पसंद रा केई कवियां रा नांव बता सकूं। जियां मोहनजी आलोक म्हनै खास दाय आवै। कारण कै आप कविता मांय घणा प्रयोग करिया। नवाचार री बात करां तो बै डांखळो अर सॉनेट राजस्थानी में लेय’र आया। लंबी कविता री बात करां तो अर्जुनदेवजी चारण री कविता घणी आच्छी लागै। आईदान सिंहजी, पारसजी, सेठियाजी, भागीरथ सिंह ‘भाग्य’, ओम पुरोहित ‘कागद’ आद पुराणी परंपरा नै आधुनिक बणावण में उस्ताद। अर उस्तादजी भेळै नारायण सिंहजी, मुकुलजी, मनुज देपावत, गिरधारीदानजी, सद्दीक साब, शक्तिदानजी, शिवराजजी छंगाणी आद केई नांव चेतै आवै। बाद रै युवा कवियां में देखां तो खासा नांव है- जियां आप खुद नीरज दइया री कविता म्हनै पसंद है।
§  नीरज दइया - सा आ तो म्हैं हाजर री हांती मानूं, आप सूं असली कवियां रा नांव जाणनो चावूं?
§  बुलाकी शर्मा - म्हारो मानणो है कै नवी अर चोखी चीज हरेक नै दाय आवै। आप री कविता पसंद है तो आ बात आज नीं म्हैं पैला ई आपनै अर दूजा मित्रां नै कैवतो आयो हूं। नांव गिणावां तो लांबी लिस्ट बण जासी.. असली बात आ कै कवियां में केई कवि फगत राजी हुवै कै म्हैं कवि हां, पण बै कवि कोनी। हरेक कवि नै खुद रो मूल्यांकन खुद नै करणो चाइजै। अर दूजी बात आ कै ऐ बातां म्हैं एक  व्यंग्यकार-कहाणीकार रूप में कैवूं जणा किणी रै गळै उतरै का नीं उतरै। ओ काम आलोचना रो है। आप खुद आलोचक हो, आ पड़ताल करो।
§  नीरज दइया - चालो कवियां नै छोड़ दां, आप दस टाळवां कहाणीकारां रा नांव जिका आप नै घणा दाय आवै बै बताओ।   
§  बुलाकी शर्मा - नांव री गिणती में तो बा ई बात हुयगी जियां थे टोप टेन कवियां रा नांव आलेख मांय लिख्या। बाद में जिका छूटग्या बां री नाराजगी रैयी, इणी ढाळै आप रो दूजो काम बिना हासलपाई देख सकां जिण में पचीस कहाणीकार मांय जिका नाम छूटग्या, बै राजी नीं है।
§  नीरज दइया - तो रोकै कुण है सा। हरेक काम री एक सींव हुवै। डॉ. अर्जुनदेवजी री पोथी में पांच कहाणीकारां रो खास मूल्यांकन हो अर म्हैं पचीस कहाणीकार नीं बां री कहाणियां नै दाखलै रूप ली। बो असल मांय कहाणी रो मूल्यांन मानो, आ जरूर है कै बो आंकड़ो पच्चीस तांई पूग्यो। अबै कोई आवणियो उण सूं बेसी करसी। म्हैं आ अरज करूं कै आलोचक अर व्यंग्यकार तो इण ढाळै री बातां पकड़ लेवै। आप व्यंग्य मांय जिकी पीड़ नै उठावो बां आपरी आलोचना-दीठ सूं ई आप छांट सको। साहित्य-समाज री अवळायां माथै आप खूब व्यंग्य लिख्या। उण लारै कोई कूड़ी का गोडै घड़ी बातां तो हुवै कोनी। असल में लागै कै आप केई साहित्यकारां सूं परेसान रैया हो, तद ई तो बां री रचनावां अर सुभाव नै व्यंग्य रै मारफत प्रगट करो।  
§  बुलाकी शर्मा - देखो भाई नीरज, म्हैं किणी साहित्यकार सूं परेसान कोनी। सगळा सूं म्हनै अपणायत मिलती रैयी है। अर म्हारी कोसीस ई आ रैयी कै किणी साहित्यकार री भावना नै ठेस नीं पूगै। वै चायै म्हारै सूं पैली पीढ़ी रा हुवै का म्हारी अर नवी पीढी रा हुवै पण म्हैं हरेक री साहित्य-सेवा रो मन सूं सम्मान करूं। पण जिका साहित्यकार सिरजण रै साथै पुरस्कारां हासिल करण खातर गणित में लाग्या रैवै, अर वै मूंडै देख बात करणिया बगत बदळतां ई आप रा सुर अर गीत बदळ लेवै। बां री ध्यावनावां बदळ जावै। इण ढाळै री प्रवृतियां माथै व्यंग्य हुवै ना कै किणी मिनख का साहित्यकार माथै।  एक रचनाकार रूप किणी दूजां नै लाग सकै कै इण भांत री कमियां म्हारै खुद मांय़ है। आज हालत आ बणगी कै आपां जे कोई खरी बात कैवां तो लोग सैन कोनी करै। आप साची बात मन री कर रैया हो अर लोग समझै घात करै। भायलां में बैर हुय जावै, तद म्हारी अक्कल व्यंग्यकार रूप इत्ती पोची कोनी कै इसी बात किणी रो नांव लेय करूं। आपां नै तो बस मीठी-मीठी अर मन भावती बातां करणी चाइजै।
§  नीरज दइया - इण रो मतलब म्हैं कवि कोनी। आप म्हनै कवि कैयो कारण कै आप मीठी-मीठी अर मन भावती बातां करो।
§  बुलाकी शर्मा - आ म्हैं कद कैयी। म्हैं तो कैयो कै आप जद टोप दस नांव कवियां रा लेवो तो जिको कवि उण मांय कोनी उण नै लागै कै फलाणजी कवि रै नांव री जागा म्हारो का फलाणजी कवि रो नांव ठीक लागतो। अबै दस मांय सूं जे आप रा सात-आठ कवियां रै नांव सूं म्हैं सहमत हूं, तो आपरी बात अर काम ठीक मानूं। जियां थे आलोचक अर म्हैं व्यंग्यकार हूं, तो कांई बिरमा जी री सगळी बातां सगळा नै दाय कोनी आवै। असल बीमारी आलोचना नै राजस्थानी रा रचनाकार सैन कोनी करै। परंपरागत कविता री परंपरा में तो बस रंग ई रंग अठै रैयो। ओ अतिश्योक्ति अलंकार कांई है! राजस्थानी में आलोचना नै म्हैं इक्कीसवीं सदी री चीज मानूं। बीसवीं सदी रा लोग मोटा है बै सैन कोनी करै अर म्हारी अरज नवा लेखकां-कवियां सूं है कै बै काळजो मोटो राखै अर आलोचक री बात माथै कान देवै अर ध्यान देवै।
§  नीरज दइया - आप बात नै फेर गोळ कर दी। चालो आप इक्कीसवीं सदी रै रचनाकारां खातर दस कहाणीकारां रा नांव आपरी पसंद रा बताओ। चालो दस कहाणीकारां री छोड़ां, आप खुद गद्यकार लूंठा हो, लारै रैया नव नांव। टाळवां गद्यकारां रा नांव आप बताओ।
§  बुलाकी शर्मा - (हंस’र) जद एक आलोचक रूप म्हनैं एक टाळवो गद्यकार मानो, तद म्हारो ई नैतिक दायित्व बणै कै एक टाळवो रचनाकार म्हैं थानै मानूं ईज। आप म्हनै उळझावण री कोसीस कर रैया हो पण म्हैं उळझूं कोनी। व्यंग्यकार तो दुसालै में लपेट’र जूतो मारै अर थे ओ दुसालो खोसणो चावो। सीधो जूतो मारणो आलोचना विधा में संभव हुवै। म्हैं कैवणी चावूं कै सरूआत मांय सिरजण सूं जद जुड़ियो तद म्हारै शहर रा म्हनै खास तौर माथै श्रीलाल नथमल जोशीजी अर यादवेंद्र शर्मा चंद्रजी घणो प्रेरित करियो, कैवां कै वां री आसीस मिली।  
§  नीरज दइया - म्हनै लागै कै राजस्थानी में व्यंग्यकार तो दस ई कोनी। आप कांई मानो?
§  बुलाकी शर्मा - ओ बैम रैया करै, पतो नीं म्हैं तो सोचूं कै तकड़ो एक व्यंग्यकार तो म्हैं हूं ई। बाकी व्यंग्यकारां री बात करां तो युवावां में शंकरसिंह म्हनै व्यंग्यकार रूप दाय आवै। उणा रो जिको अंदाज है, साथै व्यंग्य में भासा अर व्यंग्य री पकड़ सरावणजोग है। नागराजजी शर्मा, श्याम गोइंकाजी, मनोहरसिंहजी राठौड़, त्रिलोकजी गोयल, देवकिशनजी राजपुरोहित, मदन केवलिया साब, मनोहर लालजी गोयल आद घणा रचानाकार व्यंग्य विधा में बरोबर सिरजण कर रैया है। पण अजै घणो काम व्यंग्य में हुवणो बाकी है। सांवरजी नै आपां एक कहाणीकार रै रूप में आदरां जद कै वां रो व्यंग्य विधा में सरावणजोग काम रैयो। बां रै नीं रैयां आपां साम्हीं बां री पोथी  “इक्यावन व्यंग्य” इण री साख भरै। बै नृसिंहजी रै कैवणै सूं व्यंग्य लिख्या। म्हैं ई व्यंग्य लिख्या अर लोगां रो मानणो है कै व्यंग्य री पैली पोथी राजस्थानी में म्हारी ई छपी। “कवि, कविता अर घरआळी” रो जस हरख री बात मानूं। मेहतावू बात आ कै इण पोथी रा पूरा रा पूरा व्यंग्य “माणक” मांय नृसिंहजी प्रकासित करिया। पोथी छप्यां पछै बै सहमति लेय’र म्हनै लगोलग छाप्यो उण सूं म्हारी ओळखाण व्यंग्यकार रूप हुई। आ म्हैं म्हारै व्यंग्य री का व्यंग्यकार री तारीफ कोनी कर रैयो। बतावणी चावूं कै बां नै व्यंग्य रो तोड़ो लाग रैयो हो इणी खातर बै म्हनै लगोलग कैय’र मांग माथै व्यंग्य लिखवावतां रैया अर म्हैं लिखतो रैयो।  
§  नीरज दइया - कांई व्यंग्य अर हास्य व्यंग्य मांय फरक हुवै का एक ई बात है?
§  बुलाकी शर्मा - लोग व्यंग्य अर हास्य मांय फरक कोनी समझै। दोनां नै एक ई समझै जद कै व्यंग्य विसंगतियां माथै चोट कर मांयली मार करै अर करुणा उपजावै जद कै हास्य आपां नै हंसावै-गुदगुदावै। व्यंग्य उपचार खातर प्रेरित करै अर आपां नै दीठ देवै। हास्य ई आपां सगळा खातर जरूरी हुवै। आ म्हैं समझूं, सगळा समझै अर म्हैं कोनी नई बात कोनी कैय रैयो।
§  नीरज दइया - आज केई पुराणा लेखक खुदोखुद री खुरचण खावै, नवो नीं लिख रैया है। मंचां माथै बातां अर ग्यान देवण रो जाणै जिम्मो लेय लियो अर दूजै कानी इणी दौर मांय नवा लिखारा लगोलग लिख रैया है। आप नवा रचनाकारां री रचनावां अर पोथ्यां देखता रैवो। बां बाबत कीं बात बताओ कै आज बै मोरचो कियां ठीक सांभ राख्यो है? नवै टाळवै लेखकां रा नांव आपरी निजर में?
§  बुलाकी शर्मा - म्हनै म्हारी बाद री पीढी सूं घणी उम्मीदां है। बै साहित्य री सगळी विधावां में सांतरो मोरचो सांभ राख्यो है। दाखलै रूप मंडाण में सामिल युवा कवियां सूं उम्मीदां है। युवा रचनाकारां री सांवठी पीढी अबै तैयार हुवती दीख रैयी है। घणा ई नांव है। अबार जिका नांव हाथूहाथ मूंडै माथै आवै, बां मांय सूं घणा नांव म्हैं एकाएक चेतै नीं लाय सकूं। पण फेर ई राम स्वरूप किसान, नीरज दइया, नवनीत पाण्डे, रवि पुरोहित, विनोद स्वामी, सतीश छीम्पा, संतोष मायामोहन, शारदा कृष्ण, ओम नागर, दुलाराम सहारण, कुमार अजय, डॉ. सत्यनारायण सोनी, भरत ओळा, पूरण शर्मा, मधु आचार्य ‘आशावादी’, भविष्य दत्त, अतुल कनक, राजेन्द्र जोशी, मदन गोपाल लढ़ा, उम्मेद धानिया आद रचनाकारां सूं उम्मीदां है। 
§  नीरज दइया - कहाणीकारां रै नांव माथै कहाणी परंपरा नै जुग रूप देखण पेटै डॉ. चेतन स्वामी रै एक आलेख मांय कहाणीकारां रै नाम माथै काल-विभाजन करण माथै खासी चरचा रैयी। आपरो कांई मानणो है कै काहाणीकरां रै नांव माथै काल विभाजन हुवणो चाइजै का आ हासलपाई फगत भाईचारै नै आगै बधावण री है। आप व्यंग्यकार हो अर बात नै समझो, तो म्हैं बिना किणी व्यंग्य रै आप सूं पूछणो चावूं कै कांई आप नै एक कहाणीकार रै रूप मांय ओ काल-विभाजन ठीक लागै?
§  बुलाकी शर्मा - म्हैं पूरी तरै आईजी (आईदानसिंह भाटी) री बात सूं सैमत हूं कै कहाणीकारां रै नांव माथै काल-विभाजन जाबक ई खोटो है। आ तो भायलाचारै में चेतन स्वामी बिना किणी तार्किकता रै जुग थरप दीन्या। पोमीजो भलै ई, होवणो ओ चाहिजै कै बै कहाणीकार खुद इण भांत रै काल-विभाजन नै अतार्किक मान नै खारिज करता। पण जिका खुद नै प्रेमचंद सूं कीं बेसी ई मानण लागण लाग्या हुवै तो वां रो इलाज परमातमा कन्नै ई कोनी। म्हारो मानणो है कै जे कहाणीकारां माथै काल विभाजन करां तो अजै सांवर दइया जुग ई चाल रैयो है। आ म्हैं मानूं कै सांवरजी री कहाणी पछै हाल बां री परंपरा नै ई आज तांई कहाणीकार पोख रैया है। जिण भांत रा नवाचार सांवरजी कहाणी में करिया उण नै टाळ’र उण परंपरा नै नवी करण वाळो कोई नांव है तो बताओ? थे आलोचक हो बता सको। पण म्हैं कोई आलोचक कोनी। बरसां सूं लिखण-बांचण रो काम करूं पण फेर ई खुद रै लेखन सूं हाल घणी उम्मीद करूं कै की नवो अर टाळवो कीं लिखणो वाकी है।
§  नीरज दइया - आप जद कोई बात कैवो तद ओ ठाह करणो मुसकिल हुवै कै खरी बात कैय रैया हो का कोई व्यंग्य में खारी बात कैय रैया हो। खरोखरी आप कांई कैवो?
§  बुलाकी शर्मा - खरोखरी तो आ है कै कहाणी री बात करां तो हाल तो आ ई ठाह कोनी कै राजस्थानी री आधुनिक पैली कहाणी किसी मानां। कुण लिखी, कद छपी आ तो बताओ। लोककथा सूं कहाणी नै आधुनिक बणावण में घणा कहाणीकारां रो योगदान रैयो। जियां प्राणेसजी, सुदामाजी, चंद्रजी, करणीदानजी, नृसिंहजी, भ्रमरजी, रामेश्वरदयालजी कित्ता नांव गिणावूं।

§  नीरज दइया - आपरी व्यंग्य विधा में पैली पोथी आयोड़ी मानीजै, जणा म्हनैं लागै कै व्यंग्य रा प्रेमचंद तो आप हुयग्या।
§  बुलाकी शर्मा - ओ सवाल जम्यो कोनी भाई। हिंदी में प्रेमचंद उपन्यास सम्राट रै रूप आदरीजै अर व्यंग्य में परसाईजी सिरै गिणीजै। व्यंग्य में म्हैं कीं नवो करण री खेचळ करतो रैयो हूं। इण में पास-फेल रो फैसलो तो आप सरीखा आलोचक करसी। हां भाई मीठेस निरमोही म्हनै आ बात बतायी कै बिज्जी म्हारै व्यंग्य री पोथी बांच’र म्हनै राजस्थानी रो परसाई कैयो, जे वां आ बात कैयी तो म्हारै सारू किणी पुरस्कार सूं कमती कोनी।
§  नीरज दइया - राजस्थानी पत्र-पत्रिकावां, पोथ्यां, पुरस्कार अर अकादमी बाबत बात करां। साहित्य अकादेमी पुरस्कार पेटै हुयै रोळै बाबत आप कांई मानो?
§  बुलाकी शर्मा - पुरस्कार तो एक सामाजिक स्वीकृति है। लौटावणो म्हारी दीठ मांय ठीक कोनी। इण नै गळत मानूं। असहमती दरज कराण रा दूजा घणा माध्यम है। म्हारो मानणो है कै पुरस्कार सब कुछ कोनी हुवै पण जद मिल जावै तो सम्मान सूं उण नै स्वीकार कर’र राखो।
§  नीरज दइया - प्रकासन-संकट पेटै?
§  बुलाकी शर्मा - ओ संकट तो है अर इण रो कारण आपां रा पाठक बेसी कोनी। जे लेखक ई पाठक बण’र आपरै साथी लेखकां री पोथ्यां खरीद’र बांचणी सरू कर दे तो इण दिस सुधार हुय सकै। असल में आपां रै अठै बिक्री रो माध्यम सावळ कोनी जद आ बात संकट रूप लखावै।
§  नीरज दइया - पोथ्यां री सरकारी खरीद पेटै लेखक कांई कर सकै?
§  बुलाकी शर्मा - लेखकां कानी सूं  सरकार माथै दवाव वणावणो चाइकै कै सरकार कानी सूं पोथ्यां री खरीद पेटै कीं सावळ नीति तय करीजै।  जियां कै राजस्थान में साठ प्रतिशत पोथ्यां राजस्थानी भासा-साहित्य री खरीद हुवणी चाइजै।
§  नीरज दइया - सरकार कोई बात सोरै सांस कियां सुणै? लेखक समाज तो बरसां सूं मान्यता री बात कैय रैयो है, पण सुणी-अणसुणी चाल रैयी है। आज जद समाज भासा अर साहित्य सूं नीं जुड़ रैयो है? अबै कांई कोई आस करां?
§  बुलाकी शर्मा - आपां रा बड़ा लेखक बरसां सूं मान्यता रो सपनो लेय’र गया परा। ओ सपनो देखां कद पूरो हुवै। बरसां सूं आ मांग चाल रैयी है अर आस अमर धन हुवै। म्हैं पत्र-पत्रिकावां री इण में मोटी भूमिका मानूं। बरसां सूं लेखक आपरै निजू साधनां सूं पत्रिकावां निकाळै अर पोथ्यां छपवावै। आं दिनां पत्र पत्रिकावां री बात करां तो कथेसर, लीलटांस, अपरंच, बिणजारो, अनुसिरजण, मरुधरा, राजस्थली आद पत्रिकावां चोखो काम कर रैयी है। रचनावां रो चयन अर भासा पेटै सजगता निगै आवै।
§  नीरज दइया - ‘जागती जोत’ आं दिनां सूनी पड़ी है!
§  बुलाकी शर्मा - आ सरकारी रीत-नीत है। सरकार री प्राथमिकता में साहित्य कोनी। जद जागसी तद दिन हुसी अर अकादम्यां सक्रिय हुसी। 
§  नीरज दइया - आं सगळी बातां अर हालातां बिचाळै कोई लेखक क्यूं लिखै।
§  बुलाकी शर्मा - लेखन असल में मन री बळत है। लिखणो मन री बळत है। आप उण मांयली लाय सूं मुगत हुवण वास्तै लिखो तो लेखक हो। इनाम-इकराम खातर लिखण वाळा नै म्हैं लेखक कोनी मानूं। पुरस्कार री बात करां तद म्हनै आदरजोग चंद्रजी री बात चेतै आवै। बै कैया करता कै सगळा पुरस्कृत रचनाकारां रा नांव किणी नै आज याद कोनी। पुरस्कार मिलण अर नई मिलण सूं कोई लेखक महान कोनी हुवै। कांई सगळी पुरस्कृत पोथ्यां रा नांव याद है कै किण नै कद इनाम मिल्यो। कांई बै सगळी पोथ्यां चावी है। पण जिकी चोखी किताबां है अर चोखा लेखक है बां रा नांव आपां नै याद रैवै। मूळ में लेखन ई मोटो हुवै अर उण सूं ई कोई लेखक लेखक बाजै।
§  नीरज दइया - मूळ में जद लिखणो आतमा री सांति का निरायंत खातर हुवै तो लिख’र घरै राख लो। कोई छपण छपावण रा अर चरचा-कूंत आद रा जंजाळां में क्यूं पजै?
§  बुलाकी शर्मा - आ बात जरूरी रैवै कै जिकी चीज लिखी है बा समाज तांई पूगै। लिखण रो एक मकसद ओ ई हुवै कै आपां आपां रै मन री बात लोगां तांई पूगावां। समाज रै बदळाव नै लेखक लिखै अर बगत साखी है कै लिख्योड़ै साहित्य सूं ई समाज मांय कीं बदळाव आवै। खुद रो सोच समाज साम्हीं राखणो ई लेखन रो मोटो मकसद मान सकां।
§  नीरज दइया - आप राजस्थानी हिंदी दोनूं भासावां में लिखो तद आं भासावां मांय फरक कांई मानो? एक सूं बेसी भासा री लेखक नै जरूरत कांई हुवै।
§  बुलाकी शर्मा - दोनूं भासावां में कोई फरक कोनी, एक राष्ट्र-भासा है अर दूजी मात-भासा है। मात भासा सूं म्हारो जुड़ाव जद आंख खोली तद सूं है। अर हिंदी सूं माध्यम भासा रै रूप में पढाई-लिखाई करी। दोनूं सूं म्हारो जुड़ाव रैयो है। विसै रै हिसाब सूं म्हैं भासा रो चयन करूं। आ पैलां सूं तय कोनी हुवै।
§  नीरज दइया - इण मांय घणो सेल-भेळ देखां। रचना तो किणी एक भासा में मूळ है, बीजी में ई बा सागण रचना अनुवाद ई हुवै। पण लेखक एक रचना नै दोनूं भासावां में मूल रचना मानै जद कांई आ लेखकीय ईमानदारी मानीजसी?
§  बुलाकी शर्मा - किणी राजस्थानी रचना नै हिंदी पाठकां तांई हिंदी में अनुवाद कर’र पूगावणो गळत कोनी। अनुवाद रै जरियै ई आपां संसार रै साहित्य सूं ओळखाण करता रैया हां। अनुवाद रै जरियै कोई रचना घणा पाठकां तांई पूगै। रचना किणी एक भासा में मूळ मानीजसी, अर दूजी में अनुवाद। बो चायै खुद लेखक करो का कोई दूजो अनुवादक। अनुवाद अनुवाद हुवै अर मूळ मूळ हुवै। ओ खेल मूळ अर ब्याज जियां है। अनुवाद असल में मूळ रो ब्याज हुवै।
§  नीरज दइया - पण घणै संकतै कैवणी चावूं कै आप ब्याज नै ई मूळ दांई परोटो। आप री केई रचनावां दोनूं भासावां में मूळ रूप साम्हीं देख सकां।
§  बुलाकी शर्मा - थारी पारखी निजर री दाद देवूं। आ साफ लागै कै थे म्हारी ई नीं केई दूजा रचनाकारां री राजस्थानी अर हिंदी री रचनावां बराबर बांचता रैया हो जणा ई लेखकां रै इण गड़बड़ नै पकड़ सक्या हो। म्हैं मानू कै म्हारी कीं रचनावां दोनूं भासावां में मौलिक रूप छपी है। पण आ बात म्हारै मांय तो कमती है, अर केई मित्र साहित्यकारां मांय कीं बेसी है। बां रो पूरो ठाह ई कोनी लागै कै किसी रचना मूळ राजस्थानी री है का बै फगत लाभ लेवण नै राजस्थानी अनुवाद कर बां नै मौलिकता रै खातै खताय दियो। इसा लेखकां खातर राजस्थानी बरसां सूं फायदो लेवण री बात रैयी है। आपां नै राजस्थानी रा साचा सपूत बण’र भासा अर साहित्य रै बधापै खातर काम करणो चाइजै।
§  नीरज दइया - किणी हिंदी रचना रै ऊपर राजस्थानी सूं अनुवाद लिखण सूं कांई राजस्थानी रो जस बेसी कोनी हुवैला।
§  बुलाकी शर्मा - म्हैं थारी बात सूं सहमत हूं। आ बात करियां हिंदी में ठाह लागैला कै राजस्थानी लेखन सांतरो हुय रैयो है। आ घणै जस री बात मानीजैला। म्हैं आगैसर आ बात घणी सावचेती सूं ध्यान राखूंला कै अनुवाद री ठौड़ अनुवाद रो खातो न्यारो करसूं।
§  नीरज दइया - आं दिनां कांई लेखन चाल रैयो है?
§  बुलाकी शर्मा - लिखणो-बांचणो तो चालतो ई रैवै। बिना लिख्यां-पढियां तो रोटी भावै कोनी अर नींद आवै कोनी। लिखणो जीव सूं जुड़ियोडो है। घणो लिख्योड़ो अजेस अणछप्यो है। आं दिनां राजस्थानी में एक कहाणी संग्रै, एक व्यंग्य संग्रै साम्हीं लावणो चावूं। फैसलो कोनी हुय रैयो कै पैली म्हारो कहाणी -संग्रै आवणो चाइजै का व्यंग्य-संग्रै। उपन्यास ई राजस्थानी में लिखण री जीव में कर राखी है देखो जद रळी पूरी हुवै। आं सगळी बातां बिच्चै म्हारी चिंता आलोचना नै लेय’र है कै लेखन री कूंत पूरी नीं करीज रैयी है। अबार तांई जिको अर जित्तो लिख्यो है उण री कूंत हुवणी जरूरी मानूं। अबै म्हैं बरस एक नै साठो-पाठो हुय जासूं। जीव में है कै कुण कूंत करैला-करावैला। दूजां री बात छोड़ा, म्हैं म्हारै लेखन री ई बात करूं तो कुण अर कद कूंत करैला। देखां आप जिसो कोई आलोचक कद खैर-खबर लेवैला।
§  म्हारो मानणो है कै आ बळत ई कूंत रो एक हिस्सो है।
§  मानग्यो भाई, अबार म्हारै लेखन माथै थारी कलम जियां चाली बा आगै ई चालती रैवै। आ आसीस अर उम्मीद तो कर सकूं। 
("लीलटांस" तिमाही संपादक- कुमार अजय ; अगस्त-अक्टूबर 2015 में प्रकाशित) 

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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